जब लगे मंजिल है दूर कदम है मजबूर;
जब कारवां न हो साथ, गिरने पर थामने को न हो कोई हाथ ;
जब खुद का खुद से उठने लगे भरोसा ;
जब गिरकर फिर उठने का साहस न बचा हो जरा सा .
तब शिद्दत से याद दिलाना खुद को ;
वक्त लगेगा हिम्मत को परखा जाएगा ;
लोहे को लोहा कहने से पहले ज्वाला में सेका जाएगा;
अगर फिर भी राह में कोई मिल जाए और कहे कि सपनों की डगर होती नहीं आसान;
तो उन्हें कह देना इसीलिए इन पर चलने वालों के मिटते नहीं निशान;
मंजिल यक़ीनन मिलेगी ये एहसास खुद को कराते जाना ;
अगर मंजिल से पहले ही साँसे उखड गयी तो भी कुछ गम नहीं ;
उन उखड्ती साँसों में जिन्दा था एक इंसान, उस इंसान का निशाँ बनाते जाना.