Sunday, February 18, 2018

समय

कह दो कोई उनसे ;


जो इस किराये के मकान को अपना समझ बैठे हैं;
जरा ऊँचा क्या उठ गए खुद को खुदा समझ बैठे हैं||

कह दो कोई उनसे ;

काल के  कपाल में ओस की बूँद हैं सब;
कौन जाने कौन सा रूप कौन पाएगा का कब;
कोई सूरज की रौशनी में घास के तिनके का बढ़ाएगा अदब;
और किसीका रात ढलते मिटटी  में  मिल जाएगा सबब||

कह दो कोई उनसे ;

कर्म से प्रारब्ध और प्रारब्ध से कर्म सब इसके आधीन हैं;
सबने देखा है कल जिन्हें बनना था राजा राम वो चौदह वर्ष वनवास को आसीन हैं||

कह दो कोई उनसे ;

मै, मेरा धन, मेरा पद  ये पल भर में हाथ बदल जाते हैं;
इनका दम्भ न कर ये जाने के लिए ही आते हैं ;
समय की बढ़ी अद्भुत गति है ;
बिना अहम के कर्म करते जाना ही इंसान की नियति है


कह दो कोई उनसे ;

जिन्हे  फिर भी रह जाए अहम् अपनी हस्ती और नाम  का;
लगा आएं वो चक्कर एक बार शमशान का||

कह दो कोई उनसे ;

अमर , अजेय, अविनाशी और और ना जाने कितने अलंकरणों से खुद को सजाये;
रावण, सिकंदर और  कितने विश्वविजेता उसी शमशान की  राख में समाये;
और फिर भी न समझे तो उन्हें क्या बताये  ;
सोते को तो जगा लें जो सोने का नाटक कर रहे है उन्हें कैसे  जगाएं ||



मन एक जुलाहा

मन एक जुलाहा फंसी डोर सुलझाना, चाहे सिरा मिले न मिले कोशिश से नहीं कतराना, जाने मन ही मन कि जब तक जीवन तब तक उलझनों का तराना फिर भी डोर सुलझ...