Saturday, February 19, 2011

फिर एक नयी उड़ान

इरादा मन में ठान कर रखना, 
दुआओं का दामन थाम कर चलना,
ऊंचाई से गिरकर जमीन तक आने में जो वक़्त मिलेगा ,
उस वक़्त में गिर कर टूटने से पहले फिर एक नयी उड़ान पर चलना.

मकसद मिलेगा इस उम्मीद का दीपक जला कर रखना,
आंधी तेज चले फिर भी छोटे से हाथों में  दीपक बचा कर रखना ,
बुझना और जलना जीत के दीपक की नियति है, 
जीत का दीपक बुझ जाए फिर भी उम्मीद के दीपक से नयी लौ को जला कर रखना .

डगर नहीं होगी आसान ये जान कर रखना,
कर्तव्यों की लड़ाई होगी घनी ये पहचान कर रखना,
डगर यदि नहीं छूटी कर्तव्यों की लड़ी नहीं टूटी,
तो इतिहास के स्वर्णिम  पन्नों पर अपनी पहचान को पहचान कर रखना .






 

Monday, February 14, 2011

क्यूंकि मै एक आम आदमी हूँ


स्ट्रीट लाइट पर लगा है बल्ब पर जलते उसे कभी देख नहीं सकता;
जलाती है भीड़ राह खडी बसों को पर उन्हें जलने से रोक नहीं सकता ;
दुखी होना फिर भूल जाना मेरी फितरत है;
क्यूंकि मै एक आम आदमी हूँ.

रिश्वत खिलाना गलत है पर बिना रिश्वत दिए फ़ाइल बढ़ते देख नहीं सकता ;
आय चाहे लाखों में हो पर मौका मिले तो अपने आपको बी.पी. एल दिखाने से रोक नहीं सकता;
गलत को चलने देना फिर कभी खुद  गलत करना मेरी फितरत है;
क्यूंकि  मै  एक आम आदमी हूँ.

सिस्टम गन्दा  है ये हर चाय की दूकान पर सुनता हूँ पर कुछ कर नहीं सकता;
इंतज़ार है किसी सुभाष किसी भगतसिंह के आने का सिस्टम साफ़ करने  के लिए पर तब तक अपने हाथ गंदे कर नहीं सकता;
गंदगी को कोसना फिर उसी में सो जाना मेरी फितरत है;
क्यूंकि  मै  एक आम आदमी हूँ.
देश को बिकते देखता हूँ पर कुछ कर नहीं सकता;
मल्टीनेशनल कंपनी के बड़े बड़े प्रजेक्ट को मैनेज करता हूँ पर  देश के लिए समय दे नहीं सकता ;
आम आदमी का चोला पहनकर देश को कोसना मेरी फितरत है;
क्यूंकि  मै  एक आम आदमी हूँ.

मन एक जुलाहा

मन एक जुलाहा फंसी डोर सुलझाना, चाहे सिरा मिले न मिले कोशिश से नहीं कतराना, जाने मन ही मन कि जब तक जीवन तब तक उलझनों का तराना फिर भी डोर सुलझ...