Monday, July 23, 2012

ये स्वप्न का सवाल है


न जंग का भय है न शान्ति का मुकाम है ; 
न जीत का गुरुर है  न हार का मलाल है ; 
चल सको तो संग चलो ये स्वप्न का सवाल है ; 

न धूप की अगन है न छाँव का सुकून  है ;   
न सुबह की उमंग है न शाम की थकान है;  
चल सको तो संग चलो ये स्वप्न का सवाल है;  

न भीड़ का साथ है न बड़ा सर पे हाथ है;
हाँ है खुदा का फ़र्ज़ ये  और मै उसका कर्ज़दार हूँ ;
हो मुझ पे जो भरोसा; 
एक मेरा हाथ है और एक तेरा  हाथ है;
चल सको तो संग चलो ये स्वप्न का सवाल है . 

मन एक जुलाहा

मन एक जुलाहा फंसी डोर सुलझाना, चाहे सिरा मिले न मिले कोशिश से नहीं कतराना, जाने मन ही मन कि जब तक जीवन तब तक उलझनों का तराना फिर भी डोर सुलझ...