Wednesday, July 28, 2010

कौन कहता है !!

कौन कहता है  कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती;
लक्ष्य से पहले रुकने के लिए खुद की  खुद से तकरार नहीं होती;
यक़ीनन होती है पर वो फिर भी चलते हैं क्यूंकि उन्हें है यकीं ;
कि हार, हर बार नहीं होती.

कौन कहता है की कोशिश करने वालों की राह में ठोकर  नहीं होती; 
मंजिल आने से पहले पैरों की गड्ढों  से समर  नहीं होती  ;
यक़ीनन होती है पर वो फिर भी चलते हैं क्यूंकि उनका जूनून कहता है;
कि ठोकर के बिना कोई राह राह नहीं होती .

कोशिश करने वाले भी हारते  हैं  पर फिर भी सपनो की दौड़ में भागते हैं; 
क्यूंकि  उन निराशा के  पलों में जब सभी जीते जीते मरते हैं;
कोशिश करने वाले मरते मरते भी जीवन के पलों को छीन लेते हैं ;
और फिर  कहते हैं कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. 


Sunday, July 25, 2010

वो .............न हो

वो विश्वास ही क्या जो मुश्किल  की घडी में साथ न हो
वो उम्मीद ही क्या जिससे  अँधेरे में  रौशनी की आस न हो
पल दो पल के सपने तो सभी देखते हैं  
वो सपना ही क्या जिसकी उम्र जिंदगी की उम्र से समरास न हो 

वो सब्र ही क्या जो बेसब्री में पास न हो
वो हौंसला ही क्या जिससे टूटती  साँसों में पार  न हो 
जीत के सिलसिले लगें हो तो कायर भी जीत  जाते हैं
वो जीत ही क्या जिसके आने के पहले कई बार हार न हो 

वो ऊंचाई ही क्या जहाँ पहुंचकर अपने साथ न हो 
वो दौलत ही क्या जो जरूरतमंद की जरूरत का प्रभाष  न हो 
मुश्किलें समझाने से तो सभी समझ जाते हैं 
वो दोस्त ही क्या जिन्हें इन शब्दों के अन्दर छुपें दर्द का आभाष  न हो 

Friday, July 16, 2010

तो यकीं रखों

रेत की दीवार नहीं जो हवा के झोंके से गिर जाएँगे
पत्ते की पतवार नहीं जो पानी में बह जाएंगे
आजमाने की गलती न करना अगर  इरादा  कर बैठे
तो यकीं रखो  पानी  का बहना और हवा का उड़ना भी रोक जाएँगे 

खाई खोद कर चाहे राह ही मिटा दो
मुश्किलों के चाहे कितने घने बादल चढ़ा लो
अगर ये सोचते हो की मुश्किलें के बादल हमें डरा देंगे  
तो यकीं रखों हम वो राही हैं जो इस सोच को ही मिटा देंगे 

मानते हैं  संघर्ष की इस राह पर कई बार कदम रुकेंगे
तेज़ दौड़ने से पहले कुछ कदम धीरे भी चलेंगे
मगर इस पड़ाव को यदि हमारी मंजिल समझ बैठे
तो यकीं रखो इस  मंजिल पर पहुँचने से पहले अगले मुकाम का पता भी बता देंगे 

Sunday, July 4, 2010

कबीर ने नहीं कहा तो क्या मै तो कहता हूँ

कबीर ने नहीं कहा तो क्या  मै तो कहता हूँ
दर्द होता है जब किसान की खेती को भेडिए को खाते पाता हूँ

बुखमरी मिटाने की बड़ी संगोष्ठियों के नाम पर लाखों लुटाए जाते हैं
वहां मेरे किसान के बच्चे फिर भी भूखे रह जाते हैं
बातें तो लोग बड़ी बड़ी करते हैं पर बातों के आगे कुछ  कर नहीं पाते हैं
दिल रोता है तब जब कुछ लोग कुछ करने जाते हैं वो भी अपना हाथ बंधा पाते हैं 

कबीर ने नहीं कहा तो क्या  मै तो कहता हूँ
दर्द थोडा ज्यादा होता है जब किसान  की खेती को  इंसानी  भेडिए को खाते पाता हूँ

सरकारी फाइलों में सारी योजनाएं समाप्त हो जाती हैं
और फिर एक गैर सरकारी संस्था की टीम इम्पेक्ट  असेसमेंट के नाम पर पैसा बनाती है
गरीब बस उनके सवालों का जवाब देकर रह जाता है
दिल रोता है तब  जब सब सवालों के जवाब देने के बाद भी उसके खेत पर पानी नहीं पहुँच पाता है 

कबीर ने नहीं कहा तो क्या मै तो कहता हूँ
दर्द असहनीय हो जाता है जब किसान  की खेती को सरकारी और गैर सरकारी कागजों में ही उगता पाता हूँ 

ये कुछ नया नहीं जो मै कहता हूँ हर चाय की दुकान पर सुनता हूँ 
भगतसिंह , सुभाष  जैसे लोगों के होने पर समाज कितना अच्छा होता है 
पर दिल रोता है तब  जब कोई अपने घर से सुभाष, भेजने पर झिझकता है 
और उम्मीद करता है  पडोसी के घर से ही कोई  सुभाष बनता तो ज्यादा अच्छा होता है 

कबीर ने नहीं कहा तो क्या  मै तो कहता हूँ
दर्द की वेदना का तब  भान ही नहीं रहता जब यह  पढने के बाद भी आँखों में समाज-कर्त्तव्य के भावों को मुर्दा पाता हूँ 

Thursday, July 1, 2010

पर फिर याद आता है

मुश्किलों से घिर जाने पर हारने का मन भी करता है कभी 
इतने थपेड़ों में टूट कर गिर जाने का मन भी करता है कभी 
पर फिर याद आता है हार तो वो माने जो खुद के जीने के लिए लड़ते  है 
यहाँ तो हमारी लड़ाई खुदा लड़ता है हम तो उसके बन्दों के लिए लड़ते हैं 

गिरने पर वापस न उठने का मन भी करता है कभी 
कदम रुकने पर ठहर जाने का मन भी करता है कभी 
पर फिर याद आता हैं कदम तो उनके रुकें जो खुद के लिए चलते हैं 
यहाँ तो हमारे लिए खुदा चलता है हम तो उसके बन्दों के लिए चलते हैं 

ख्वाबों के अधूरे रह जाने पर  खुदा पर  चिल्लाने का मन भी  करता है कभी
मनचाही चीज़ न मिलने पर किस्मत पर आरोप लगाने का मन भी करता है कभी
पर फिर याद आता है खुदा पर वो चिल्लाएं जिनके ख्वाब खुद के लिए हों 
यहाँ तो हमारे ख्वाब खुदा इस तरह बुनता है जैसे बुना हुआ ख्वाब खुद खुदा के लिए हो


मन एक जुलाहा

मन एक जुलाहा फंसी डोर सुलझाना, चाहे सिरा मिले न मिले कोशिश से नहीं कतराना, जाने मन ही मन कि जब तक जीवन तब तक उलझनों का तराना फिर भी डोर सुलझ...