कह दो कोई उनसे ;
जो इस किराये के मकान को अपना समझ बैठे हैं;
कह दो कोई उनसे ;
जो इस किराये के मकान को अपना समझ बैठे हैं;
जरा ऊँचा क्या उठ गए खुद को खुदा समझ बैठे हैं||
कह दो कोई उनसे ;
काल के कपाल में ओस की बूँद हैं सब;
कौन जाने कौन सा रूप कौन पाएगा का कब;
कोई सूरज की रौशनी में घास के तिनके का बढ़ाएगा अदब;
और किसीका रात ढलते मिटटी में मिल जाएगा सबब||
कह दो कोई उनसे ;
काल के कपाल में ओस की बूँद हैं सब;
कौन जाने कौन सा रूप कौन पाएगा का कब;
कोई सूरज की रौशनी में घास के तिनके का बढ़ाएगा अदब;
और किसीका रात ढलते मिटटी में मिल जाएगा सबब||
कह दो कोई उनसे ;
कर्म से प्रारब्ध और प्रारब्ध से कर्म सब इसके आधीन हैं;
सबने देखा है कल जिन्हें बनना था राजा राम वो चौदह वर्ष वनवास को आसीन हैं||
कह दो कोई उनसे ;
मै, मेरा धन, मेरा पद ये पल भर में हाथ बदल जाते हैं;
बिना अहम के कर्म करते जाना ही इंसान की नियति है
कह दो कोई उनसे ;
जिन्हे फिर भी रह जाए अहम् अपनी हस्ती और नाम का;
लगा आएं वो चक्कर एक बार शमशान का||
कह दो कोई उनसे ;
अमर , अजेय, अविनाशी और और ना जाने कितने अलंकरणों से खुद को सजाये;
रावण, सिकंदर और कितने विश्वविजेता उसी शमशान की राख में समाये;
और फिर भी न समझे तो उन्हें क्या बताये ;
सोते को तो जगा लें जो सोने का नाटक कर रहे है उन्हें कैसे जगाएं ||
सबने देखा है कल जिन्हें बनना था राजा राम वो चौदह वर्ष वनवास को आसीन हैं||
कह दो कोई उनसे ;
मै, मेरा धन, मेरा पद ये पल भर में हाथ बदल जाते हैं;
इनका दम्भ न कर ये जाने के लिए ही आते हैं ;
समय की बढ़ी अद्भुत गति है ;बिना अहम के कर्म करते जाना ही इंसान की नियति है
कह दो कोई उनसे ;
जिन्हे फिर भी रह जाए अहम् अपनी हस्ती और नाम का;
लगा आएं वो चक्कर एक बार शमशान का||
कह दो कोई उनसे ;
अमर , अजेय, अविनाशी और और ना जाने कितने अलंकरणों से खुद को सजाये;
रावण, सिकंदर और कितने विश्वविजेता उसी शमशान की राख में समाये;
और फिर भी न समझे तो उन्हें क्या बताये ;
सोते को तो जगा लें जो सोने का नाटक कर रहे है उन्हें कैसे जगाएं ||