वो गिरते हैं पर आवाज नहीं होती
वो हारते हैं पर हार की साज़ नहीं होती
जिन्हें खुद पर भरोसा हो
उन राहगीरों की जीत के आगाज़ के आगे हार की परवाज़ नहीं होती
वो मजबूरी में पड़ते हैं पर झुकने की झंकार नहीं होती
जिन्हें खुद पर भरोसा हो
उन राहगीरों को राह क्या मंजिलों की भी परवाह नहीं होती
गिरना हारना मुश्किलों में घिर जाना
राह नज़र न आये फिर भी ऐ रही बढ़ते जाना
क्यूंकि जो राही आखिर तक खुद पर भरोसा रख पाए
उनके गिरने और हारने के पथ्थरों को ही दुनिया ने काशी और काबा माना
Awesome
ReplyDelete