Friday, August 20, 2010

वो

वो गिरते हैं पर आवाज नहीं होती
वो हारते हैं पर हार की साज़ नहीं होती
जिन्हें खुद पर भरोसा हो
उन राहगीरों  की जीत के आगाज़ के आगे हार की परवाज़ नहीं होती

वो लड़ते हैं पर किस्मत की दरकार नहीं होती 
वो मजबूरी में पड़ते हैं पर झुकने की झंकार नहीं होती
जिन्हें खुद पर भरोसा हो
उन राहगीरों को राह क्या मंजिलों की भी परवाह नहीं होती 

गिरना हारना मुश्किलों में घिर जाना
राह नज़र न आये फिर भी ऐ रही बढ़ते जाना
क्यूंकि जो  राही आखिर तक खुद पर भरोसा रख पाए
उनके गिरने और हारने  के पथ्थरों को ही दुनिया ने काशी और  काबा माना 

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