जहाँ खुद चलने का मौका न मिले स्याही तो यक़ीनन चलाना राही;
बादल और सूरज मिलकर अँधेरे में चाहे राह को छिपा लें;
फिर भी उपरवाले को दिल में रखकर उम्मीद का दीपक जलाना राही .
जब घिर जाना मुश्किलों के बवंडर में;
खुद का उठने लगे खुद पर से भरोसा इस अनजाने समुन्दर में;
लगे कि बस नहीं हो सकता एक और कदम का समर;
फिर भी दिल से उपरवाले को आवाज देकर समुन्दर के इस भवंर को डराना राही.
ये सब शेक्सपियर नहीं कहता इतिहास कि किताबें नहीं कहती;
ग़ालिब नहीं लिखता मीरा नहीं गाती;
एक चीटीं कि कहानी सुनी थी किसी नुक्कड़ में;
उस चीटी कि जुबानी समझ इस बात को भुलाना मत राही.
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