Saturday, October 16, 2010

राही

कई बार राह नहीं दिखेगी फिर भी कदम बढ़ाना राही;
जहाँ खुद चलने का मौका न मिले स्याही तो यक़ीनन चलाना राही;
बादल  और सूरज मिलकर अँधेरे में चाहे राह को छिपा लें;
फिर भी उपरवाले को दिल में रखकर उम्मीद का दीपक जलाना राही .

जब घिर जाना मुश्किलों के बवंडर में; 
खुद का उठने लगे खुद पर से भरोसा इस अनजाने समुन्दर में;
लगे कि बस नहीं हो सकता एक और कदम का समर; 
फिर भी दिल से उपरवाले को आवाज देकर समुन्दर के इस भवंर को डराना राही.

ये सब शेक्सपियर नहीं कहता इतिहास कि किताबें नहीं कहती;
ग़ालिब नहीं लिखता  मीरा नहीं गाती; 
एक चीटीं कि कहानी सुनी थी किसी नुक्कड़ में; 
उस  चीटी कि जुबानी समझ इस बात को भुलाना मत राही. 

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