Wednesday, October 20, 2010

बिना लिखा फ़साना


जो पत्थर हथोडी की चोट नहीं खाता
वो न तो मंदिर में न किसी मस्जिद में जगह कभी पाता
मुश्किलें तो जिंदगी कि तस्वीर का अनोखा रंग हैं
बिना इस रंग को पाए अगर जीत भी गए तो भी जीत की तस्वीर में मज़ा नहीं आता 

पत्ता जो टूटे पेड से पेड निष्प्राण नहीं होता
बूँद दो बूँद गर बह जाए फिरभी झरना वीरान नहीं होता
गिरना हारना तो हर राह में लगा होता है 
गिरने हारने के डर यदि इंसान कदम न उठाए तो इंसान इन्सान नहीं होता 

चोट खाना पल दो पल के लिए गिर भी जाना
मुश्किलें घेर ही लें तो चंद आंसूं भी बहा जाना
पर याद रखना की तुझे गिरके है फिर उठना और आंसूं पोछकर फिर मुस्कुराना 
क्यूंकि गर ऐसा न हुआ तो किसी टूटे पत्ते और गिरी बूँद सा तू रह जाएगा बिना लिखा फ़साना 

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