Thursday, January 27, 2011

किसको शीश झुकाऊं मै?

किसको शीश झुकाऊं मै?
घर से चौराहे तक सड़क मिले न मिले;
चौराहे पर बहनजी कि प्रतिमा जरुर पाऊं मै;
किसको शीश झुकाऊं मै?
जब से होश सम्हाला सुनता आया चारा और हवाला;
पहले लाखों का पता नहीं चलता था अब मेरे देश के अरबों के खो जाने की अर्जी किससे फिर लगाऊं  मै ;
किसको शीश झुकाऊं मै?
गाँधी को कभी टोपी क्या तन पर पूरा कपडा पहने नहीं देखा; 
पर उनके बेहरूपी नाम और टोपी वालों को कैसे कर दूँ अनदेखा ;
जो कर दे बेध इन दोनों में वो सीबीआई कहाँ से लाऊं मै; 
किसको शीश झुकाऊं मै?
शुक्र है साठ वर्ष में गाँव न सही बिजली के खम्भे कम से कम शहरों में पहुँच गए;
पर उनमे बिजली लाने कि आस किससे लगाऊं मै;
किसको शीश झुकाऊं मै?
कोई जाती के नाम पर लडवाता है और कोई धर्म के नाम पर ;
अंग्रेजों की बोई इस जेहरीली खेती को किससे  मिट्वाउन  मै;
किसको शीश झुकाऊं मै?
अखबार तो एडवरटाईज़मेन्ट से भरे पड़ें हैं;
अपनी शिकायत फिर कहाँ छपवाऊं मै; 
किसको शीश झुकाऊं मै?
आस तो थोड़ी सी थी इस देश के पढ़े लिखे नव-जवानों से ;
पर अच्छी डिग्री पाकर पैसे की दौड़ छोड़ देश के लिए कुछ करने की विनती किसे सुनाऊं मै 
किसको शीश झुकाऊं मै? 

 

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