Tuesday, November 23, 2010

कौन हो तुम

कौन हो तुम पूछ लिया परिस्थितियों ने उससे  आज;
गिर जाते हो पर आती नहीं कराहने कि आवाज;
हार जाते हो पर दुखी चेहरा नहीं देख पाता कोई तीरंदाज ;
इधर दर्द के  तांडव नाच का रहता है आगाज़ ;
उधर तुम्हारा  कर्त्तव्य रथ आसमा में करता है परवाज़ ;
.कौन हो तुम पूछ लिया परिस्थितियों ने उससे आज

कौन हो तुम ये आज बताना होगा ;
किसने तुम्हे भेजा है ये आज समझाना होगा;
परिस्थितियों के प्रश्नों को आज सुलझाना होगा

देख प्रश्नों कि बारिश वो बोल पड़ा;
नाम है मेरा आम आदमी और फिर ये जोड़ चला;
थोडा सा भरोसा खुद पर रखता हूँ ;
थोडा ज्यादा अपने खुदा कि सुनता हूँ ;
गिरता हूँ हारता हूँ दर्द में कराहता हूँ;
पर दुखी होकर कभी रुकने नहीं पाता हूँ;

क्यूंकि यकीं है: 
अगर गिरने के बाद भी सांस चल रही है;
हारने के बाद भी नब्ज़ फड़क रही है;
दर्द से चीत्कार के बाद भी पैरों कि धड़कन भड़क रही है;
तो मेरे खुदा का है ये इशारा कि मेरी मंजिल अभी भी है बाकी;
और देखो इस आम आदमी कि  आँखें मंजिल देख पाने को तरस रही हैं .

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